Colorectal Cancer: बृहदान्त्र में हो रही समस्या कही कोलन कैंसर तो नहीं
कोलोरेक्टल कैंसर को कई लोग कोलन कैंसर के नाम से भी जानते है। यह एक ऐसा कैंसर है जो की बड़ी आंत और मलाशय के हिस्से में पोलिप (polyp) के रूप में उत्पन्न होता है।
फेफड़ों के बाद अगर कोई कैंसर है जिससे लोग सबसे ज्यादा ग्रसित है तो वो कोलोरेक्टल कैंसर हीं है। यह बात विश्व स्वास्थ संगठन (WHO) और अमेरिका सीडीसी (CDC) ने कही है।
जहाँ कोलन और मलाशय दोनों खाना पचाने में मददगार होते है वही छोटी आंत खाने से ऊर्जा बनाकर बॉडी को एनर्जी प्रदान करती है। कोलन और मलाशय बॉडी में ठोस पदार्थों को बहार निकालने का काम करती है। इसी बीच कोलोरेक्टल कैंसर उत्पन्न होता है। इसे विकसित होने में कभी कभी कई साल भी लग जाते है।
इस लेख में हम आपको बताने जा रहे हैं की अगर आप या आपके जान पहचान का कोई व्यक्ति कोलोरेक्टल कैंसर से ग्रसित है तो कैसे आप उनकी इस बीमारी को समझ सकते है और साथ ही कोलन कैंसर के लक्षण क्या है, कारण क्या होते है आदि। तो नीचे पढ़े Colorectal Cancer.
Colorectal Cancer: पढ़े की कोलोरेक्टल कैंसर के बारे में
कोलोरेक्टल कैंसर होता क्या है ?
- मानव शरीर में दो आंते होती है और कोलोरेक्टल कैंसर बड़ी आंत में होने वाला कैंसर होता है।
- इस वजह से कोलोरेक्टल कैंसर को कोलन कैंसर भी कहा जाता है।
- स्टार्टिंग में कोलोरेक्टल कैंसर बृहदान्त्र पोलिप (polyp) के रूप होता है और फिर धीरे धीरे विकसित हो जाता है।
- वैसे होता तो यह पेट के अंदर हीं है इसलिए लोग कई बार इसे पेट का कैंसर भी कहते है।
कोलोरेक्टल कैंसर के प्रकार
- बृहदान्त्र कैंसर (colon cancer) - यह कैंसर बड़ी आंत में होता है। जो आपके बॉडी के पाचन तंत्र का हिस्सा होता है। यह एक आम प्रकार का कैंसर होता है।
- मलाशय कैंसर (rectal cancer) - यह कैंसर बृहदान्त्र के अंतिम सिरे होने वाला कैंसर होता है।
कोलोरेक्टल कैंसर होने के लक्षण
खाने में बदलाव
- खाने में बदलाव आना signs of colon cancer।
- आपके खाने पीने की आदत में बदलाव होने की वजह से भी कोलोरेक्टल कैंसर होने की आशंका बढ़ जाती है।
- आप कितनी भी क्वांटिटी में खाए ज्यादा या कम पर आपको हमेशा ही अपना पेट भरा हुआ लगता है।
दस्त या कब्ज रहना
- इसमें हमेशा ही कब्ज की शिकायत रहती है।
- अगर कब्ज की शिकायत नहीं है तो दस्त की समस्या ज़रूर रहती है।
- कोलोरेक्टल कैंसर होने के यह दोनों एक लक्षण है अगर किसी को हमेशा ही दस्त और कब्ज की समस्या है तो जल्द ही डॉक्टर को दिखाए।
मल का रंग अलग होना
- अगर किसी को कोलोरेक्टल कैंसर की समस्या है तो उसके मल के रंग में बदलाव आ जाता है।
- मल का रंग लाल होता है या फिर काला हो जाता है।
मल में खून आना
- कोलोरेक्टल कैंसर ग्रसित लोगो को मल के साथ खून आने की समस्या भी होती है।
- ज्यादातर लोगो में देखा गया है की मल के साथ जो खून आता है उसका रंग गहरा लाल और काला होता है।
पेट की समय होना
- पेट में हमेशा ही ऐंठन की समस्या रहना।
- इसी के साथ पेट हमेशा भरा हुआ लगना या भी पेट में भारीपन महसूस होना।
वजन में गिरावट
- कोलोरेक्टल कैंसर में मनुष्य का लगातार वजन कम होता है।
- इसमें बिना डाइटिंग के भी आपके वजन में गिरावट होती है।
कमजोरी और थकान रहना
- कोई भी बीमारी हो कमजोरी और थकान तो होती है।
- वैसे ही कोलोरेक्टल कैंसर में भी व्यक्ति अगर कोई कार्य नहीं करता है उसके बाद भी उसे थकान होती है और कमजोरी महसूस होने लगती है।
कोलोरेक्टल कैंसर होने के कारण
- कोलोरेक्टल कैंसर ज्यादातर 50 वर्ष की आयु से ज्यादा के लोगो को होता है।
- किसी की बॉडी में पशुओं से मिलने वाला प्रोटीन ज्यादा मात्रा में होना।
- सैचुरेटेड फैट (संतृप्त वसा) वाले आहार का सेवन ज्यादा करना।
- ऐसे भोजन का सेवन करना जिसमे फाइबर की मात्रा कम होती है।
- बहुत ही ज्यादा कैलोरीज़ वाले भोजन का सेवन अधिक मात्रा में करना।
- अल्कोहल का अधिक मात्रा में सेवन करना।
- उन महिलाओ में इसका खतरा ज्यादा होता है जिन्हे गर्भाशय कैंसर, स्तन कैंसर या फिर अंडाशय कैंसर रहा हो।
- परिवार में किसी को पहले कोलोरेक्टल कैंसर हो या फिर पेरेंट्स में से किसी को हो।
- अल्सरेटिव कोलाइटिस (Ulcerative Colitis) समस्या से पहले ही ग्रसित हो।
- जिन लोगो का अधिक वजन हो उन्हें भी यह समस्या होने की शिकायत रहती है।
- धुम्रपान करना। एक शोध में यह साबित हुआ है की कोलोरेक्टल कैंसर को बढ़ावा देने में और साथ ही इससे होने वाली मौत की वजह है धुम्रपान।
- हमेशा शरीर में आलस बना रहना और सुस्त रहना।
- डायबिटीज टाइप 2 से ग्रसित हो।
कोलोरेक्टल कैंसर के लिए जांच और परिक्षण
- अगर किसी में इस तरह से लक्षण देखने को मिले तो रेगुरल टेस्ट ज़रूर करवाए।
- इस की मदद से आप पहले ही कैंसर को पहचान सकते है और सही समय पर उपचार कर सकते है।
- अमेरिका कैंसर सोसाइटी का यह मानना है की 50 वर्ष के बाद सभी को एक बार ज़रूर कैंसर की जाँच करवानी चाहिए।
- डिजिटल रेक्टल परीक्षण (डीआरई) - यह जाँच 40 वर्ष की आयु के बाद ज़रुर करवानी चाहिए।इस में निचले मलाशय और अंतर् अंगो की जांच होती है। इसे हर साल करवाना चाहिए।
- फेकल ओकल्ट ब्लड टेस्ट (एफओबीटी) - 50 वर्ष के बाद हर साल आपको ये जांच करवानी चाहिए। इसमें मल मे खून की जांच होती है।
- सिग्मोइडोस्कोपी (Sigmoidoscopy) - इससे आपकी बड़ी आंत और मलाशय की जांच की जाती है।
- कोलोनोस्कोपी (Colonoscopy) - यह जांच सिर्फ बड़ी आंत के कैंसर का पता लगाने के लिए की जाती है। इसकी जाँच 50 वर्ष की आयु के बाद हर 10 साल में करवानी चाहिए।
इस ऊपर दिए लेख में हम ने आज आपको कोलोरेक्टल कैंसर से जुड़ी सभी प्रकार की जानकारी दी है जो आपके लिए काफी ज्यादा फ़ायदेमंद होगी। इसी के साथ अगर आप किसी में इस बीमारी के लक्षण देखे तो आप उसका सही समय पर उपचार करवाने के लिए पहल कर सकते हैं ।