Premature Baby Problems: समयपूर्व जन्मे बच्चों का रखें खास ख्याल

प्रत्येक गर्भवती महिला इस बात को लेकर उत्सुक रहती है की जल्दी से उसका शिशु दुनिया में आये और वह उसे देख सके। जिसके लिए वह गर्भावस्था के नौ महीनो तक प्रतीक्षा करती है।

नौ महीनों का समय गर्भ में शिशु के पूर्ण रूप से विकास करने के लिए होता है। ताकि माँ और बच्चा पूरी तरह से स्वस्थ हो और महिला एक स्वस्थ और तंदुरुस्त बच्चे को जन्म दे सके।

कभी कभी कुछ परिस्थितियों के कारण कुछ शिशुओं का जन्म नौ महीनों से पहले भी हो जाता है। उसे प्रीमैच्योर शिशु कहा जाता है। प्रीमैच्योर शिशु गर्भ के कठिन नौ महीनों से नहीं गुजरता और ऐसे शिशुओं को बाहर आने के बाद कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

प्रीमैच्योर शिशु का सामान्य शिशु की तुलना में अधिक ध्यान देने की आवश्यकता होती है। जानते है Premature Baby Problems के बारे में विस्तार से।

Premature Baby Problems: क्या होते है प्रीमैच्योर शिशु, होने वाली परेशानिया और बचाव

प्रीटर्म या प्रीमैच्योर क्या होता है?

  • गर्भावस्था के 37 सप्ताह से पहले जिन शिशुओं का जन्म होता है उन्हें समयपूर्व या प्रीमैच्योर शिशु कहा जाता है।
  • प्रीटर्म शिशु वाले शिशु का आकर बहुत छोटा होता है।
  • पर इनके सिर का आकार बड़ा होता है।
  • यदि आप ध्यान देंगे तो इनके शरीर का तापमान कम रहता है और इनके शरीर पर बाल भी अधिक मात्रा में होते है।

वजन का कम होना

  • प्रीमैच्योर शिशु में सबसे ज्यादा जो समस्या उत्पन्न होती है वह है वजन के कम होने की।
  • ऐसे शिशु पूर्ण रूप से विकसित नहीं हो पाते है जिसके कारण उनका वजन सामान्य से कम होता है।

साँस की परेशानी

  • डॉक्टर का मानना होता है की बच्चे के फेफड़े तीसरे तिमाही के अंत तक पूरी तरह विकसित नहीं होते हैं। जिसके कारण प्रीमैच्योर शिशु को साँस लेने में कठिनाई आती है।
  • साथ ही इस तरह के शिशुओं में अस्थमा और ब्रोन्कोपोल्मोनरी डिस्प्लासिआ (बीपीडी) की समस्या भी उत्पन्न हो सकती है।
  • बीपीडी एक पुरानी फेफड़े की बीमारी है जो फेफड़ों को असामान्य रूप से विकसित होने या सूजन होने के कारण बनती है।

कमजोर मांशपेशियां

  • जन्म समय से पहले जन्म हुए शिशुओं में मांसपेशियां कमजोर होती है।
  • ऐसे शिशुओं की मांसपेशियां पूरी तरह से मजबूत नहीं हो पाती है।

हृदय की समस्याएं

  • प्रीमैच्योर शिशु को हृदय की समस्याओं का भी सामना करना पड़ सकता है।
  • शिशु को दिल के आस-पास के विकास संबंधी समस्याओं का खतरा होता है जैसे उच्च रक्तचाप ।

ध्यान केंद्रित करने में परेशानी

  • समय से पूर्व जन्मे शिशुओं को ध्यान केंद्रित करने में परेशानी होती है। इस प्रकार की समस्या को अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (एडीएचडी) कहते है।
  • इस तरह के शिशु प्रतिस्पर्धा के क्षेत्रों में पीछे रह जाते है।
  • साथ ही उन्हें कुछ भी सीखने में परेशानी आने लगती है।

अन्य समस्याएं

  • ऐसे कुछ शिशुओं में दिमागी लकवा जिसे सेरीब्रल पाल्सी कहा जाता है, की समस्या भी उत्पन्न हो सकती है।
  • कुछ शिशुओं में पीलिया होने की सम्भावनाये भी अधिक होती है।
  • जैसे जैसे वह बड़े होते है उनमे कई मनोवैज्ञानिक, शारीरिक और आर्थिक समस्याएं उत्पन्न होने लगती है ।
  • ऐसे कई शिशु की मृत्यु भी हो जाती है। मस्तिष्क संबंधी विकार भी हो सकते है। जिसमे मानसिक समस्याएं भी शामिल होती है।
  • इस तरह के शिशु में बहरापन की समस्या भी हो सकती है। साथ ही ये आंतो की समस्याओं से भी ग्रसित हो सकते है।
  • दांतों से जुड़ी समस्याएं भी हो सकती है। ऐसे शिशु को संक्रमण का खतरा भी जल्दी होता है साथ ही इनका इम्यून सिस्टम भी कमजोर होता है जिसके कारण ये रोगों से जल्दी घिर जाते है।
  • इस तरह के बच्चों में विजन की समस्या भी होती है।

प्रीटर्म शिशु के जन्म होने का कारण

प्रीटर्म शिशु के कई कारण हो सकते है जिनमे से कुछ प्रमुख है।

  • गर्भवती महिला का उच्च रक्तचाप
  • मधुमेह की समस्या
  • गर्भवती महिला की उम्र कम होना
  • आनुवंशिक कारणों से भी यह समस्या आ सकती है।
  • गर्भावस्था के दौरान सावधानियों को अनदेखा करना

प्रीटर्म शिशु को रोकने के उपाय

उपरोक्त समस्याओं से शिशु को बचाने के लिए कुछ उपाय किये जा सकते है ताकि शिशु का जन्म सही समय पर हो सके।

  • गर्वभावस्था के दौरान महिला को अपना और शिशु दोनों का ही खास ख्याल रखना चाहिए इसमें कोई भी लापरवाही नहीं करनी चाहिए।
  • चिकित्सक से समय समय पर सलाह ज़रुर ले और संतुलित आहार का सेवन करे।
  • जिन महिलाओ को पहले भी प्रीटर्म प्रसव की समस्या हो चुकी है उनको अपने अगले प्रसव के दौरान खास सावधानी रखनी चाहिए और साथ ही अपने चिकित्सक को भी इस बारे में सूचित करना चाहिए ताकि वह आपको सही राय दे सके।
  • गर्भावस्था के दौरान महिला को धूम्रपान नहीं करना चाहिए और धूम्रपान करने वालों से भी दूरी बना कर रखनी चाहिए चाहिए। यह भी जल्दी प्रसव का कारण बनता है।
  • महिला को अपने वजन पर भी ध्यान देना चाहिए। इसके लिए अपने चिकित्सक से यह जानकारी भी लेते रहना चाहिए की आपका और आपके शिशु का कितना वजन होना चाहिए।
  • भोजन भी समय पर ही खाये और पोषक तत्वों से भरपूर भोजन करे।
  • इस बात का भी ध्यान रखे की आप जो भोजन कर रहे है उसमे सभी पोषक तत्व है की नहीं। खासकर प्रोटीन, काबोर्हाइड्रेट और डेयरी उत्पाद फल व सब्जियों पर ज्यादा ध्यान दे।
  • महिला को संक्रमण वाली चीजों से दूर रहना चाहिए।

नोट- चिकित्सक द्वारा बताई गयी सारी सलाह और परामर्श पर ध्यान दे । उन दवाओं का समय समय पर सेवन करे जो डॉक्टर ने बताई है साथ ही अपने मुताबिक कोई अन्य दवा न खाये ।