प्रेगनेंसी के दौरान पहली तिमाही में अक्सर वजाइनल ब्लीडिंग (योनि से रक्तस्राव) होता है। यह एक सामान्य ब्लीडिंग होती है और इससे किसी तरह की परेशानी नहीं होती है। पर यदि प्रेगनेंसी की दूसरी या तीसरी तिमाही में ब्लीडिंग हो तो फिर किसी गंभीर समस्या की संभावना बन जाती है। मालूम हो कि ब्लीडिंग होने के कई कारण हो सकते हैं। आमतौर पर ब्लीडिंग किसी तरह के इंफैक्शन, तनाव से हार्मोन में परिवर्तन और गलत तरीके से शारीरिक संबंध बनाने से होती है।
किसी भी प्रकार की असामान्य घटना होने पर अपने डॉक्टर से संपर्क करे। इसमें डर जैसी कोई बात नहीं होती है लेकिन फिर भी जरुरी होता है की आप अपने और अपने बच्चे का परिक्षण करवा ले। अगर आपकी योनि से पानी या चिपचिपा पदार्थ जैसा कुछ निकल रहा है, तो उसकी जाँच जरूर करवाये। कई बार ऐसा डिस्चार्ज में हुए प्रसव का कारण बन जाता है या बच्चे की जान का खतरा हो जाता है।
प्रेगनेंसी के दौरान नार्मल म्यूकस लुब्रिकेशन बढ़ जाता है क्युकी उस दौरान शरीर में ब्लड का फ्लो ज्यादा होता है। लेकिन अगर बदबूदार, परेशान करने वाला और प्रोफस डिस्चार्ज निकलता है तो उसका टेस्ट करने की जरुरत है।
अगर आपको गर्भावस्था के दौरान खून आता है तो परेशान न हो, शांत रहे। ध्यान दे की क्या आपको ज्यादा दर्द है या फिर ब्लड ज्यादा निकल रहा है। इस बात को अपने डॉक्टर को सही-सही बताये, जिससे वह आपको सही राय और उपचार दे सके।
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जानें क्यों होती है प्रेगनेंसी के दौरान ब्लीडिंग?
1. मिसकरिज (गर्भपात):-
ब्लीडिंग मिसकरिज की निशानी है, पर इसका मतलब यह नहीं कि मिसकरिज तय है। इसके अलावा अनुवांशिक असामान्यताएं, संक्रमण, दवा का रिएक्शन, हार्मोनल प्रभाव और संरचनात्मक और रोग प्रतिरोधक असामान्यताएं आदि भी इसका कारण बनते है। शोध से पता चला कि 20 से 30 प्रतिशत महिलाओं को गर्भावस्था के शुरुआती दिनों में ब्लीडिंग की शिकायत रहती है। इनमें से 50 प्रतिशत महिलाओं के साथ ब्लीडिंग होने के बावजूद भी मिसकरिज नहीं होता है। फिर भी बेहतर होगा कि आप एहतियात बरतें और सावधान रहें।
2. एक्टापिक प्रेगनेंसी:-
एक्टापिक प्रेगनेंसी वो प्रेगनेंसी है, जो यूटेरस के बाहर विकसित होती है। ज्यादातर एक्टापिक प्रेगनेंसी के लिए फलोपीअन ट्यूब जिम्मेदार होता है। मिसकरिज की तुलना में एक्टापिक प्रेगनेंसी काफी असामान्य है और 60 में से एक मौके पर ही ऐसा होता है। यदि यह लगातार बढ़ता रहे तो यह टुब फट भी सकती है। माँ के लिए यह स्तिथि बहुत खतरनाक होती है।
3. प्लासेंटल अब्रप्शन:-
लेबर के दौरान या उससे पहले प्लासेंटा का यूटरिन वॉल से अलग हो जाने के कारण भी वजाइनल ब्लीडिंग होती है। सिर्फ एक प्रतिशत महिलाओं में ऐसा देखने को मिलता है। आमतौर पर यह प्रेगनेंसी के आखिरी 12 हफ्ते में होता है। इस पर जल्दी ध्यान देना जरुरी है, नहीं तो ऑक्सीजन और ब्लड नहीं मिलने के कारण बच्चे की अकाल मृत्यु भी हो सकती है। इससे माँ का खून बहने का भी डर रहता है।
4. मोलर प्रेगनेंसी:-
बहुत कम मौकों पर ही ऐसा होता है कि ब्लीडिंग के लिए मोलर प्रेगनेंसी जिम्मेदार हो। मोलर प्रेगनेंसी को मोल भी कहा जाता है और इसमें भ्रूण की जगह एब्नॉर्मल टिशू विकसित हो जाता है। कई बार इसे जेस्टेशनल ट्रोफोब्लास्टिक डिजीज (जीटीडी) भी कहा जाता है।
5. प्लासेंटा प्रिविआ:-
प्लासेंटा प्रिविआ उस समय होता है, जब प्लासेंटा यूटेरस में काफी नीचे आ जाता है और गर्भाशय को आंशिक रूप से या पूरी तरह से ढक लेता है। यह एक गंभीर समस्या है और इसके लिए तुरंत जरूरी कदम उठाना चाहिए। 200 प्रेगनेंसी में से सिर्फ एक में ही ऐसा देखने को मिलता है। इसमें बिना दर्द की ब्लीडिंग होती है।
6. प्रीटर्म लेबर:-
वजाइनल ब्लीडिंग लेबर का भी संकेत हो सकता है। लेबर शुरू होने से कुछ हफ्ते पहले से म्यूकस प्लग निकलता है। यह आमौतर पर थोड़ा म्यूकस और खून से बना होता है। अगर यह काफी पहले हो जाए तो समझिए आप प्रीटर्म लेबर में प्रवेश कर रहे हैं। ऐसे में जल्द ही आपको फिजिशियन से परामर्श लेना चाहिए।
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