योग मुद्राओं के नियमित अभ्यास से पंच तत्वो को करें संतुलित

योग मुद्राओं के नियमित अभ्यास से पंच तत्वो को करें संतुलित

योग और प्राणायाम के अलावा योग मुद्राओं का भी अपना एक अलग महत्व है। जानकारी के आभाव में लोगों को ऐसा लगता है कि योग और प्राणायाम ही शरीर को स्वस्थ रखते है, लेकिन हम आपको बता दे कि इनके अलावा योग मुद्रा एक ऐसी क्रिया है जो करने में आसान भी है और इनके लाभ प्राणायाम से कही अधिक है। योग में केवल आसन नहीं बल्कि मुद्राएं भी अहम् भूमिका निभाती है।

योग मुद्राओं को नियमित रूप से सुबह-सुबह शुद्ध हवा में करने से कई प्रकार के स्वास्थ लाभ प्राप्त होते है। योग में कई तरह की मुद्राओं का वर्णन किया गया है। यहाँ हम आपको कुछ मुख्य मुद्राओं के बारे में विस्तार से जानकारी देने वाले है। जिसमें हम इन् मुद्राओं का महत्व, करने का तरीका और लाभ बताने वाले है।

इन योग मुद्राओं से हमें शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक लाभों की प्राप्त होती है। हमारे शरीर में पांच तत्व पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश होते है। योग मुद्रा के नियमित अभ्यास से ये सभी तत्व कभी निष्क्रिय नहीं होते है और यह उन्हें हमेशा संतुलित बनाये रखते है। आइये जानते है Yoga Mudra in Hindi.

 

Yoga Mudra in Hindi: जाने इसकी विधि और लाभ

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Gyan Mudra - ज्ञान मुद्रा

जैसा इसस मुद्रा के नाम से ही आप समझ गए होंगे कि इसका सम्बन्ध ज्ञान से है अर्थात इसे करने से सोचने और समझने की क्षमता बढ़ती है। इसलिए इसे अंग्रजी में मुद्रा ऑफ़ नॉलेज भी कहा जाता है। इस मुद्रा को करते समय हाथो की ग्रंथियों का सम्बन्ध हमारे मष्तिष्क से होता है। दाएँ हाथ का बाएँ मस्तिष्क और बाएँ हाथ का दाएँ मस्तिष्क से संबंध होता है। जब हम इस मुद्रा को ध्यान पूर्वक करते है तो मष्तिष्क के सोये हुए तंतु जाग जाते है जिससे हमारे सोचने की क्षमता में वृद्धि होती है।

विधि:

  1. सबसे पहले किसी साफ़ स्थान पर चटाई बिछाकर पद्मासन या सुखासन की स्थिति में बैठ जाए।
  2. अब अपने दोनों हाथो को घुटनो पर रखे और हथेलियों को आसमान की तरफ खुला रखे।
  3. इसके बाद तर्जनी उंगली को मोड़कर अपने अंगूठे स्पर्श करें।
  4. बाकि तीनो को उंगलियों को सीधा रखें और ध्यान रखे इस क्रिया को आपको दोनों हाथो से करना है।
  5. आँखों को बंद करके इस क्रिया को करते हुए साँस लेते रहे।

लाभ:

  • मस्तिष्क की सुस्ती को खत्म कर, बुद्धिमत्ता और स्मरण शक्ति को बढ़ाता है।
  • याददाश्त की कमजोरी और लापरवाही को कम कर, एकाग्रता में वृद्धि करता है।
  • इसके नियमित अभ्यास से मानसिक विकारों जैसे क्रोध, भय आदि से भी मुक्ति मिलती है।
 

Vayu Mudra - वायु मुद्रा

हमारा शरीर पंच तत्वो से मिलकर बना है। जिसमें वायु तत्व के असंतुलित हो जाने से वात और कफ सम्बंधित रोग जन्म लेने लगते है। इन् रोगों से बचने के लिए तथा वायु संबंधी अन्य विकारों की रोकधाम के लिए वायु मुद्रा का अभ्यास कारगर साबित होता है।

विधि:

  1. सुखासन या वज्रासन की स्थिति में बैठकर दोनों हाथो को घटने पर रखें तथा हथेलियों को ऊपर की तरफ रखें।
  2. इसके बाद तर्जनी ऊँगली को अंगूठे की जड़ से लगते हुए अंगूठे से हल्का दबाव डालें।

लाभ:

  • इसके नियमित 10-15 मिनट अभ्यास से एसिडिटी, गैस, कब्ज आदि पेट संबंधी विकारों से रहत मिलती है।
  • गठिया, साइटिका, जोड़ो के दर्द आदि से मुक्ति मिलती है।
  • इनके अलावा पक्षाघात, उदार विकार और अल्सर जैसे रोगों में भी लाभ मिलता है।
 

Agni Mudra - अग्नि मुद्रा

यह मुद्रा हमारे शरीर में मौजूद अग्नि तत्वों को नियंत्रित करने में तथा बढ़ते वजन को काम करने और पाचन तंत्र को ठीक कर ने में सहायक होता है।

विधि:

  1. पद्मासन की स्थिति में बैठकर हाथों को हथेलियों को ऊपर की तरफ रखे।
  2. इसके बाद छोटी ऊँगली के पास वाली ऊँगली अर्थात अनामिका ऊँगली को मोड़कर अंगूठे से हल्का दबाये।
  3. नियमित इसका अभ्यास 10 से 15 मिनट तक करें।

लाभ:

  • बढ़ते वजन और कोलेस्ट्रॉल से पीड़ित लोगों को राहत दिलाता है।
  • एसिडिटी और अम्लपित्त को दूर कर पाचन तंत्र को मजबूत बनाता है।
 

Prithvi Mudra - पृथ्वी मुद्रा 

सभी मुद्राओं में पृथ्वी मुद्रा का विशेष महत्व है। यह हमारे शरीर में मौजूद पृथ्वी तत्वों को जाग्रत करने में सहायक होता है। यह मुद्रा आध्यात्मिक दृष्टि से भी बहुत अच्छी होती है।

विधि:

  1. सुखासन की अवस्था में बैठकर हाथों को घुटनों पर रखें और अपना ध्यान सांस पर लगाए।
  2. अब तर्जनी ऊँगली को अंगूठे के अग्रभाग से स्पर्श कराये और अंगूठे से इसे हल्का सा दबाएं और तीनो उंगलियो को सीधा रखें।
  3. इस क्रिया को आप किसी भी समय कर सकते है।

लाभ:

  • शारीरिक दुबलापन और कमजोरी को दूर करता है।
  • संयम और सहनशीलता बढ़ती है।
  • चेहरे का तेज बढ़ता है तथा त्वचा साफ़ और चमकदार बनती है।
 

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Varun Mudra - वरुण मुद्रा

वरुण का मतलब होता है जल और यह तो सभी जानते है कि अगर हमे एक दिन भी जल न मिले तो हमारी हालात कैसी हो जाती है। जल मुद्रा हमारे शरीर में मौजूद जल तत्वों को बनाये रखने के साथ-साथ शरीर को ठंडक और सक्रियता प्रदान करता है।

विधि:

हाथ की सबसे छोटी यानी कनिष्क ऊँगली को जब अंगूठे से मिलते है तो वरुण मुद्रा बनती है। छोटी ऊँगली को जल तत्व का प्रतिक माना जाता है और जब जल तत्व और अग्नि तत्व आपस में मिलते है तो बदलाव जरूर होता है।

लाभ:

  • शरीर का रूखापन दूर होता है और चमक बढ़ती है।
  • इसके नियमित अभ्यास से खून साफ़ होता है और त्वचा रोगों में राहत मिलती है।
  • बुढ़ापा जल्दी नहीं आता है।
 

आज आपने जाना Yoga Mudra in Hindi. इनके सही और नियमित अभ्यास से आप शारीरिक विकारों को दूर कर स्वस्थ बने रह सकते है। लेकिन इनका अभ्यास किसी योग्य शिक्षक के सानिध्य में ही करें।

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